Sunday, July 19, 2009

मैं और मेरी तन्हाई...अली सरदार जाफ़री

आवारा हैं गिलयों में मैं और मेरी तनहाई
जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुसवाई


ये फूल से चहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते
राहें हैं तमाशाई रही भी तमाशाई


मैं और मेरी तन्हाई


अरमान सुलगते हैं सीने में िचता जैसे
काितल नज़र आती है दुिनया की हवा जैसे
रोटी है मेरे िदल पर बजती हुई शहनाई


मैं और मेरी तन्हाई


आकाश के माथे पर तारों का चरागाँ है
पहलू में मगर मेरे जख्मों का गुलिस्तां
है आंखों से लहू टपका दामन में बहार आई


मैं और मेरी तन्हाई


हर रंग में ये दुिनया सौ रंग िदखाती है
रोकर कभी हंसती है हंस कर कभी गाती है
ये प्यार की बाहें हैं या मौत की अंगडाई


मैं और मेरी तन्हाई

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